Go To Mantra

सा॒तिर्न वोऽम॑वती॒ स्व॑र्वती त्वे॒षा विपा॑का मरुत॒: पिपि॑ष्वती। भ॒द्रा वो॑ रा॒तिः पृ॑ण॒तो न दक्षि॑णा पृथु॒ज्रयी॑ असु॒र्ये॑व॒ जञ्ज॑ती ॥

English Transliteration

sātir na vo mavatī svarvatī tveṣā vipākā marutaḥ pipiṣvatī | bhadrā vo rātiḥ pṛṇato na dakṣiṇā pṛthujrayī asuryeva jañjatī ||

Mantra Audio
Pad Path

सा॒तिः। न। वः॒। अम॑ऽवती। स्वः॑ऽवती। त्वे॒षा। विऽपा॑का। म॒रु॒तः॒। पिपि॑ष्वती। भ॒द्रा। वः॒। रा॒तिः। पृ॒ण॒तः। न। दक्षि॑णा। पृ॒थु॒ऽज्रयी॑। असु॒र्या॑ऽइव। जञ्ज॑ती ॥ १.१६८.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:168» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) विद्वानो ! (वः) तुम्हारी जो (पिपिष्वती) बहुत अङ्गोंवाली (अमवती) ज्ञानवती (स्वर्वती) जिसमें सुख विद्यमान (विपाका) विविध प्रकार के गुणों से परिपक्व (त्वेषा) उत्तम दीप्ति (सातिः) लोकों की विभक्ति अर्थात् विशेष भाग के (न) समान है और (वः) तुम्हारी जो (पृणतः) पालन करने वा विद्यादि गुणों से परिपूर्ण करनेवाले की (दक्षिणा) देने योग्य दक्षिणा के (न) समान (पृथुज्रयी) बहुत वेगवती (असुर्येव) प्राणों में होनेवाली बिजुली के समान वा (जञ्जती) युद्ध में प्रवृत्त झंझियाती हुई सेना के समान (भद्रा) कल्याण करनेवाली (रातिः) देनी है, उससे सबको बढ़ाओ ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो इन जीवों की पाप पुण्य से उत्पन्न हुई सुख दुःख फलवाली गति है, उससे समस्त जीव विचरते हैं। जो पुरुषार्थी जन सेना जन शत्रुओं को जैसे-वैसे पापों को जीत निवारि धर्म का आचरण करते हैं, वे सदैव सुखी होते हैं ॥ ७ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतो वो या पिपिष्वत्यमवती स्वर्वती विपाका त्वेषा सातिर्नेवास्ति वो या पृणतो दक्षिणा नेव पृथुज्रय्यसुर्य्येव जञ्जती भद्रा रातिरस्ति तया सर्वान् वर्द्धय ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (सातिः) लोकानां विभक्तिः (न) इव (वः) युष्माकम् (अमवती) ज्ञानयुक्ता (स्वर्वती) विद्यमानसुखा (त्वेषा) प्रदीप्तिः (विपाका) विविधगुणैः परिपक्वा (मरुतः) विद्वांसः (पिपिष्वती) पिपींषि बहवोऽवयवा विद्यन्ते यस्याः सा (भद्रा) कल्याणकारिणी (वः) युष्माकम् (रातिः) दानम् (पृणतः) पालकस्य विद्यादिभिः प्रपूरकस्य वा (न) इव (दक्षिणा) दातुं योग्या (पृथुज्रयी) बहुवेगा (असुर्येव) असुषु प्राणेषु भवा विद्युदिव (जञ्जती) यथा युद्धे प्रवृत्ता सेना ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यैषां जीवानां पापपुण्यजन्या सुखदुःखफला गतिरस्ति तया सर्वे जीवा विचरन्ति। ये पुरुषार्थिनः सैन्याः शत्रूनिव पापानि विजित्य निवार्य धर्ममाचरन्ति ते सदैव सुखिनो भवन्ति ॥ ७ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. या जिवाच्या पाप-पुण्याने झालेली सुख-दुःख फल देणारी जी गती आहे त्यामुळेच संपर्ण जीव विचरण करतात. जे पुरुषार्थी सेनेद्वारे शत्रूंचा निःपात करतात, त्यांचे पाप नाहीसे करतात व धर्माचे आचरण करतात ते सदैव सुखी होतात. ॥ ७ ॥